तब महसूस नही की थी, किन्तु आज वो बात याद आ रही है, वंही कालेज के दिन और क्लास में मै लेट होने से तेजी से उपर के फ्लोर पे जा रही थी,वंही जंहा से सीडी से मुडके क्लास में जाते है, मै तेजी से क्लास में जाती ,इसके पहले हमारे गांवके जमींदार के बेटे ने कोई पर्चा dena चाहा, किन्तु उसे अनदेखा कर मै क्लास में चली गई.उसने फिर कभी पर्चा नही दिया, गाँव में जरुर वः किसी समारोह में दिखा, पर मेरा अहंकार सातवे असमान पर था, किसी से बात न करना, या पहचानने से मना करना, शायद उस दौर की अबोधता ही थी.
आज इतने बरस बाद एकाएक वो घटना याद आई.क्यों नही मालूम ३० बरस पहले घटित वाकया को आज
विश्लेष्ण कर पाती हु, की मै अपने ही गाँव के लडकों को नही जानती थी, किन्तु उसे जानती थी, कभी उसने
कोई बात ही नही की थी, तब मैंने उसे इतना अनदेखा करदी यह मेरी अल्प्बुधि ही थी.उस घटना की गलती
का अहसास आज हुआ है, मुझे लगता है, वो चुनाव में हिस्सा लेने से प्रचार करता रहा होगा,यदि मै गाँव की
प्रतिष्ठित परिवार से थी, तो वो भी जमींदार परिवार से था, गांवके नाते सहज बातचीत होती, यंही
शिस्ताचार था , मैंने उसका पालन नही की, इसका अफ़सोस जानेक्युं आज हो रहा है .
आज इतने बरस बाद एकाएक वो घटना याद आई.क्यों नही मालूम ३० बरस पहले घटित वाकया को आज
विश्लेष्ण कर पाती हु, की मै अपने ही गाँव के लडकों को नही जानती थी, किन्तु उसे जानती थी, कभी उसने
कोई बात ही नही की थी, तब मैंने उसे इतना अनदेखा करदी यह मेरी अल्प्बुधि ही थी.उस घटना की गलती
का अहसास आज हुआ है, मुझे लगता है, वो चुनाव में हिस्सा लेने से प्रचार करता रहा होगा,यदि मै गाँव की
प्रतिष्ठित परिवार से थी, तो वो भी जमींदार परिवार से था, गांवके नाते सहज बातचीत होती, यंही
शिस्ताचार था , मैंने उसका पालन नही की, इसका अफ़सोस जानेक्युं आज हो रहा है .